चार मंजिला भवन निर्मित होता देख अधिकारी भी चौंक गए। भवन स्वामी रईस अंसारी से दस्तावेज दिखाने को कहा तो वह कुछ पेश नहीं कर पाया।नैनीताल: उत्तराखंड के नैनीताल में अवैध अतिक्रमणकारियों की हिम्मत इस कदर बढ़ गई है कि अब उनको पुलिस या प्रशासन का भी ख़ौफ़ नहीं है।
उनके हौसले ऐसे बुलंद हैं कि चेतावनी के बावजूद उनको किसी का खौफ नहीं है। उत्तराखंड के नैनीताल में प्राधिकरण की ओर से ध्वस्तीकरण के आदेश और कार्रवाई के बाद भी एक व्यक्ति ने चार मंजिला भवन खड़ा कर दिया गया। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इसके बाद भी प्राधिकरण के फील्ड कर्मियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। निर्माण कार्य की शिकायत डीएम तक पहुंचने के बाद प्राधिकरण सचिव और एसडीएम निरीक्षण के लिए पहुंचे तो हकीकत सामने आई। कार्रवाई को पहुंची टीम और निर्माणकर्ता बीच तीखी नोकझोक भी हुई। जब सचिव ने भवन खाली कराकर ध्वस्त करने के निर्देश दिए तो निर्माणकारी ने प्राधिकरण सहायक अभियंता का नाम लेते हुए घूसखोरी के आरोप तक लगा दिए। टीम ने दिनभर में तीन अवैध निर्माण ध्वस्त किये।दरअसल बीते मंगलवार को डीएम धीराज गर्ब्याल के निर्देश पर प्राधिकरण सचिव पंकज उपाध्याय, एसडीएम राहुल साह अन्य कर्मियों के साथ राजमहल कंपाउंड क्षेत्र पहुंचे, तो चार मंजिला भवन निर्मित होता देख अधिकारी भी चौंक गए। जब भवन स्वामी रईस अंसारी से दस्तावेज और निर्माण अनुमति दिखाने को कहा तो वह कुछ भी पेश नहीं कर पाया।पड़ताल की तो पता चला कि भवन के ध्वस्तीकरण के आदेश 2010 में हो चुके है। पहले भी ध्वस्तीकरण भी किया गया था। इसके बाद भी चार मंजिला भवन तैयार कर कई कमरे बेच भी दिए गए है। इस दौरान प्राधिकरण अधिकारियों और निर्माणकर्ता के बीच तीखी नोंकझोंक भी हुई। जिसके बाद प्राधिकरण सचिव को मौके पर पुलिस बल मंगाना पड़ा। सचिव ने तत्काल रूप से भवन को खाली कराने के निर्देश दिए। आश्चर्य से भी ज्यादा शर्मनाक बात है कि प्रशासन को भनक तक नहीं कि अंसारी भवन का 2010 से ध्वस्तीकरण आदेश पारित है और वह उसमें 4 मंजिला घर बनवा रहा है। जिसके बाद भी निर्माण कार्य किया गया है। भवन में निवासरत लोगों को तीन दिन के भीतर हटने को कहा गया है। ऊर्जा और जल संस्थान को कनेक्शन काटने के लिए पत्राचार किया जा रहा है। तीन दिन बाद भवन के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी। अवैध निर्माणों की सूची तैयार कर जल संस्थान और ऊर्जा निगम को देकर कनेक्शन कटवाए जाएंगे।
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यह पहला ऐसा मामला नहीं है। रईस अंसारी जैसे कई ऐसे लोग हैं जो हमारी जमीनों पर अवैध कब्जा किए बैठे हुए हैं। सरकार को सब कुछ दिखता है, मगर वह देखना नहीं चाहती। कितने ऐसे भवन हैं जिनको कई साल पहले ध्वस्तीकरण के आदेश मिल चुके हैं मगर आजतक उन पर कार्यवाही नहीं हुई है। बड़े अभियंताओं या अन्य अधिकारियों के हस्तक्षेप से मामला टल जाता है और बदले में इनको अच्छा खासा पैसा मिलता है। ऐसे ही भ्र्ष्ट एवं लापरवाही अधिकारियों और सिस्टम की छत्र छाया में ऐसे अतिक्रमणकारियों की हिम्मत बढ़ रही है जिसका खामियाजा कल को हमारे खुद के लोगों को उठाना पड़ेगा। इसी के साथ हमको यह भी पता लगता है कि उत्तराखंड में एक सख्त भू कानून लाना कितना जरूरी है। प्रदेश में भू-कानून में संशोधन को लेकर हो-हल्ला तो खूब मचा, लेकिन इसको नया स्वरूप देने के लिए संबंधित अधिकारी ही संजीदा नहीं दिखाई दे रहे हैं। एक ओर अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयों समेत जनोपयोगी कार्यों के लिए सरकार को भूमि नहीं मिल रही है, दूसरी ओर अनियोजित तरीके से बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त थमने का नाम नहीं ले रही। बड़े पैमाने पर भूमि खरीद के चलते कई स्थानों पर जनसांख्यिकीय में तेजी से हो रहे बदलाव ने देवभूमि के स्वरूप को लेकर नई चिंता को जन्म दिया है। कुल मिला कर समय-समय पर उत्तराखंड की जनता सख्त भू कानून की मांग करती है मगर हर बार यह मामला रफा दफा हो जाता है।
ब्यूरो रिर्पोट