प्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि प्रत्यर्पण निदेशालय यानी ED को किसी की गिरफ्तारी से पहले उसे लिखित में वजह बतानी होगी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एजेंसी से एकतरफा और मनमाने व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने कहा, ‘न्यायालय को लगता है कि यह जरूरी है. इसलिए आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले, उसे लिखित में वजह बतानी चाहिए. इसमें किसी भी तरह की छूट नहीं है.’ न्यायालय ने एजेंसी को पारदर्शी और साफ-सुथरे तरीके से काम करने का भी निर्देश दिया.
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ,रियल एस्टेट ग्रुप M3M के डायरेक्टर पंकज बंसल और बसंत बंसल की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इस याचिका में दोनों ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें न्यायालय ने पीएमएलए (PMLA) के तहत उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि गिरफ्तारी के दौरान दोनों आरोपियों को सिर्फ मौखिक तौर पर आरोपों की जानकारी दी गई थी और लिखित में कुछ नहीं बताया गया था तो न्यायालय ने नाराजगी जाहिर की. कहा कि इससे मनमानेपन की बू आती है. कोर्ट ने कहा कि पूरी क्रोनोलॉजी पर नजर डालें तो इससे पता लगता है कि ईडी कितने खराब तरीके से काम कर रही है और उसकी कार्य प्रणाली का भी पता लगता है. लिखित में कारण न बताना संविधान का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को अवैध ठहराते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने सिर्फ मौखिक तौर पर गिरफ्तारी की वजह बताई. यह संविधान के आर्टिकल 22 (1) और पीएमएलए एक्ट के 19 (1) का भी उल्लंघन करता है. बेंच ने कहा कि ईडी देश की प्रीमियम जांच एजेंसी है. ऐसे में उसके कंधों पर बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां हैं. इसलिए हर कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही भी दिखनी