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भू-माफिया ने बोक्सा जनजाति की जमीनें, बेची जांच दबाए बैठे हैं राजस्व अधिकारी

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सुनील कुमार प्रधान संपादक

कोटद्वार में राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से अनुसूचित जनजाति (बोक्सा) की जमीनों की खरीद-फरोख्त जोरों पर है। जबकि, नियमानुसार ऐसा करना आसान नहीं है। इसके लिए नियमों की अनदेखी की जा रही है, जिसमें राजस्व विभाग के अधिकारी भी खेल कर रहे हैं। उनकी मिलीभगत के बगैर बोक्सा जनजाति की जमीनों की खरीद-फरोख्त अवैध रूप से करना आसान नहीं है। बावजूद, यहां जमीनों को आर-पार करने खेल कर दिया गया। मामले में जांच भी हुई, लेकिन अब तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसका खुलासा RTI में हुआ है। कहा गया है कि जांच गतिमान है, सवाल उठता है कि आखिर ऐसी कौन सी जांच है, जिसे पूरा करने में एक साल से ज्यादा वक्त लग गया है।

राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत पर इसलिए जोर दिया जा रहा है, क्योंकि जिलाधिकारी गढ़वाल की जांच आख्या के एक साल बाद भी उत्तराखंड राजस्व परिषद के अधिकारी कार्रवाई को दबाकर बैठे हैं। अप्रैल 2022 में कोटद्वार के भूमाफिया राजस्व परिषद के चक्कर काटते हुए देखे गए थे। उसके बाद से वह अधिकारी जो इस मामले को बहुत संगीन बता रहे थे। जांच के लिए अधिकारियों का एक दल कोटद्वार तहसील भी पहुंचा था। लेकिन, तब से लेकर आज तक जांच रिपोर्ट ही सामने नहीं आई है।

बताया जा रहा है कि इस जांच को दबाने के लिए भू-माफियाओं ने बहुत मोटा खर्च किया है। दरअसल, तहसील कोटद्वार में अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की एक ही दिन में तीन-तीन बीघा करके भूमि को अकृषक घोषित कर दिया गया और उसके बाद धारा 143 की अपील जो जिलाधिकारी के समक्ष की जाती है, उसे जिलाधिकारी के समक्ष ना करके उपायुक्त गढ़वाल के समक्ष की गई। जबकि उपायुक्त धारा 143 की अपील सुनने का अधिकार ही नहीं है।

उसके बावजूद उपायुक्त गढ़वाल ने अपील का निस्तारण करते हुए यह कह दिया कि क्योंकि भूमि अकृषक घोषित हो चुकी है, इसलिए अब इसके सामान्य व्यक्ति को बेचने पर जिलाधिकारी की अनुमति की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा ही एक मामला पिथौरागढ़ जिले का सामने आया था, जिस पर उत्तराखंड के एडिशनल कमिश्नर रिवेन्यू की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील फाइल की गई थी।

सिविल अपील संख्या 7346 ऑफ 2010, एडिशनल कमिश्नर उत्तराखंड आदि एवं अखलाक हुसैन आदि में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 3 मार्च 2020 को एडिशनल कमिश्नर उत्तराखंड की अपील स्वीकार करते हुए स्पष्ट कह दिया कि भूमि का प्रकार चेंज हो जाने के बावजूद अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को जिलाधिकारी की अनुमति के बिना भूमि को बेचने का कोई अधिकार नहीं है। उसके बावजूद उपायुक्त गढ़वाल द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट आदेशों की भी अवहेलना करते हुए भू-माफिया के पक्ष में निर्णय लिया गया और जांच के बाद अब राजस्व परिषद के तेज तरार अधिकारी जांच को दबा कर बैठे हुए हैं

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