उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण के नाम पर‘मोबाइल’ घोटाला! बिना यूज़ किए कबाड़ हो गए 13 करोड़ के फोन..गजब हाल है
अफसोस की बात ये है कि करोड़ों खर्च कर खरीदे गए ये फोन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के काम नहीं आ सके। 13 करोड़ के मोबाइल कबाड़ बन गए।
देहरादून: सरकारी पैसे को कैसे ठिकाने लगाया जाता है, ये देखना हो तो उत्तराखंड चले आइए। यहां दूसरे विभागों पर जब-तब घोटाले के आरोप लगते रहे हैं।
एक खबर के मुताबिक इस बार महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग में मोबाइल खरीद में बड़ा गड़बड़झाला सामने आया है। आरोप है कि विभाग ने आंगनबाड़ी वर्कर्स के लिए 22 हजार मोबाइल फोन और इतने ही पावर बैंक खरीदे थे। जिसकी कुल लागत 13 करोड़ रुपये बताई गई। विभाग ने बल्क में खरीद के बावजूद एक फोन आठ हजार 46 रुपए में खरीदा, जबकि इसी फोन की ऑनलाइन कीमत साढ़े पांच हजार से भी कम है। खैर ये तो हुई खरीद की बात, लेकिन अफसोस की बात ये है कि करोड़ों खर्च कर खरीदे गए ये फोन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के भी काम नहीं आ सके।
मामला साल 2018 और 2019 का है। सरकार ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को देने के लिए 22 हजार मोबाइल फोन और इतने ही पावर बैंक खरीदे, ताकी वो टीकाकरण, टेक होम राशन का वितरण जैसी गतिविधियों को ऑनलाइन अपडेट कर सकें। इसमें एक विशेष सॉफ्टवेयर भी था, जिसका नाम है पोषण ट्रैकर ऐप, लेकिन ज्यादातर मोबाइल में ये ऐप खुला ही नहीं। आंगनबाड़ी वर्कर्स का कहना है कि उन्होंने छह महीने के भीतर ही ये फोन वापस विभाग को जमा कर दिए। क्योंकि फोन में न तो डाटा फीड हो पा रहा था और न ही ऐप खुल रहा था। मोबाइल की प्रोसेसिंग कैपासिटी बहुत कम थी। खबर के मुताबिक आरटीआई एक्टिविस्ट रघुनाथ नेगी ने इस मामले में विभाग से जानकारी मांगी तो कई गड़बड़ियां सामने आईं। आगे पढ़िएl
उत्तराखंड देहरादून
उत्तराखंड में ‘मोबाइल’ घोटाला! बिना यूज़ किए कबाड़ हो गए 13 करोड़ के फोन..गजब हाल है
अफसोस की बात ये है कि करोड़ों खर्च कर खरीदे गए ये फोन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के काम नहीं आ सके। 13 करोड़ के मोबाइल कबाड़ बन गए।
देहरादून: सरकारी पैसे को कैसे ठिकाने लगाया जाता है, ये देखना हो तो उत्तराखंड चले आइए। यहां दूसरे विभागों पर जब-तब घोटाले के आरोप लगते रहे हैं।
एक खबर के मुताबिक इस बार महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग में मोबाइल खरीद में बड़ा गड़बड़झाला सामने आया है। आरोप है कि विभाग ने आंगनबाड़ी वर्कर्स के लिए 22 हजार मोबाइल फोन और इतने ही पावर बैंक खरीदे थे। जिसकी कुल लागत 13 करोड़ रुपये बताई गई। विभाग ने बल्क में खरीद के बावजूद एक फोन आठ हजार 46 रुपए में खरीदा, जबकि इसी फोन की ऑनलाइन कीमत साढ़े पांच हजार से भी कम है। खैर ये तो हुई खरीद की बात, लेकिन अफसोस की बात ये है कि करोड़ों खर्च कर खरीदे गए ये फोन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के भी काम नहीं आ सके।
मामला साल 2018 और 2019 का है। सरकार ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को देने के लिए 22 हजार मोबाइल फोन और इतने ही पावर बैंक खरीदे, ताकी वो टीकाकरण, टेक होम राशन का वितरण जैसी गतिविधियों को ऑनलाइन अपडेट कर सकें। इसमें एक विशेष सॉफ्टवेयर भी था, जिसका नाम है पोषण ट्रैकर ऐप, लेकिन ज्यादातर मोबाइल में ये ऐप खुला ही नहीं। आंगनबाड़ी वर्कर्स का कहना है कि उन्होंने छह महीने के भीतर ही ये फोन वापस विभाग को जमा कर दिए। क्योंकि फोन में न तो डाटा फीड हो पा रहा था और न ही ऐप खुल रहा था। मोबाइल की प्रोसेसिंग कैपासिटी बहुत कम थी। खबर के मुताबिक आरटीआई एक्टिविस्ट रघुनाथ नेगी ने इस मामले में विभाग से जानकारी मांगी तो कई गड़बड़ियां सामने आईं। आगे पढ़िए
ये उनका कहना है कि खरीदे गए मोबाइल बेहद कम दो जीबी रैम के थे, इंटनरल स्टोरेज कैपासिटी भी मात्र 16 जीबी थी। जबकि, इसके लिए कम से कम छह जीबी रैम का मोबाइल होना चाहिए था। इस तरह 13 करोड़ के फोन कबाड़ हो गए। रघुनाथ नेगी ने आंगनबाड़ी वर्कर्स के लिए की गई साड़ियों की खरीद में भी घोटाले का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि विभाग ने 2021 में आंगनबाड़ी वर्कर्स के लिए 66 हजार छह सौ साड़ियां व सूट खरीदे। जिनकी कीमत दो करोड़ साठ लाख रुपये आई। बल्क में हुई इस खरीद में एक साड़ी की कीमत 393 रुपए तो सूट की कीमत 398 रुपए दिखाई गई है, लेकिन इनकी गुणवत्ता इतनी खराब है कि कोई शायद ही इन्हें पहनना चाहे। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि ये बड़ा करप्शन है। मुख्यमंत्री को इस पर तत्काल संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए ब्यूरो रिपोर्ट
































