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हरिद्वार सीट परकब किसने जीत हासिल की , ऐसा रहा चुनावी इतिहास

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हरिद्वार राजनीतिक उतार-चढ़ाव की साक्षी रही हरिद्वार लोकसभा सीट पर अधिकतर समय भाजपा का ही दबदबा रहा। शुरूआत में भारतीय लोकदल के प्रभाव वाली इस सीट पर कांग्रेस ने पकड़ मजबूत करने में सफलता हासिल की, लेकिन 1991 के बाद एक-दो मौके छोड़ दिए जाएं तो अधिकतर समय भाजपा ही इस सीट का प्रतिनिधित्व करती रही।

धर्मनगरी हरिद्वार की सीट राजनीतिक दलों के लिए कई अर्थों में महत्वपूर्ण बन गई है। इस सीट पर जीत-हार से निकला संदेश राजनीतिक दलों के लिए अन्य क्षेत्रों में समीकरण साधने का महत्वपूर्ण हथियार बनता जा रहा है। ऐसे में हरिद्वार की लड़ाई काफी रोचक रहने वाली है।


हरिद्वार लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई। तब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का यहां खासा प्रभाव था। यही कारण रहा कि पहला चुनाव लोकदल ने जीता। 1980 में यह सीट जनता पार्टी ने जीती, लेकिन 1984 में समीकरण बदले और कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। 1987 के उपचुनाव में भी कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा। 1989 में भी कांग्रेस का दबदबा कायम रहा।

1991 में कांग्रेस से भाजपा में आए राम सिंह सैनी ने समीकरण बदल दिए और यह सीट भाजपा की झोली में आ गई। इसके बाद हरिद्वार सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई और भाजपा के हरपाल साथी ने लगातार तीन चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया। 2004 में सपा ने यह सीट भाजपा से छीन ली।

2009 में हरिद्वार सीट के अनारक्षित श्रेणी में आने के साथ ही कांग्रेस के हरीश रावत ने जीत दर्ज की। पिछले दो चुनाव भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने जीतकर पार्टी का दबदबा बनाया। 2014 में आम आदमी पार्टी ने पहली पुलिस महानिदेशक रही कंचन चौधरी को प्रत्याशी बनाते हुए राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश की थी। पर, सफल नहीं हो सकी। कुल मिलाकर हरिद्वार सीट छह बार भाजपा और चार बार कांग्रेस के कब्जे में रही।

परिसीमन के बाद राजनीतिक मिजाज प्रभावित

हरिद्वार लोकसभा सीट का 2011 में परिसीमन होने के बाद राजनीतिक हाल चाल भी प्रभावित हुआ। हरिद्वार सीट में देहरादून के तीन विधानसभा क्षेत्र डोईवाला, धर्मपुर और ऋषिकेश शामिल किए गए। ऐसे में चुनावी समीकरण ही नहीं बदले, बल्कि भाजपा, कांग्रेस, सपा व बसपा के कई कद्दावर नेताओं के लिए नई राजनीतिक पिच पर खेलने की चुनौती बढ़ी है। अधिकतर दलों के होमवर्क में इस सीट पर क्षेत्रीय, जातीय व अन्य समीकरण साधने की ही रणनीति होती है।

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